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लेखन ही मेरा जीवन है तो लेखन ही मेरी कला है
इस लेखन को लेकर ही प्रीतम अब तक चला है
:- प्रीतम सिंह नेगी "तम्मा"
24 March 2016
22 March 2016
19 March 2016
तेरे दीदार के खातिर तेरी राह पर चलता रहा मैं ऐ रब मगर अब तू मुझे मिल भी जाये तो तुझे देखूँ तक नहीं ©tammathewriter.blogspot.in
तेरे दीदार के खातिर तेरी राह पर चलता रहा मैं ऐ रब
मगर अब तू मुझे मिल भी जाये तो तुझे देखूँ तक नहीं
©tammathewriter.blogspot.in
09 March 2016
अब तू करे वफ़ा या करे दगा
बुझने के बाद मेरे दिल में फिर दीप जगा
ओ साल पिछले मिलके तुमसे ऐंसा लगा
जैंसे ये"प्रीतम" खुद "प्रीतम" से ही मिला
फिर फूल प्रेम का तेरे-मेरे दिल में खिला
पर मुझको है मिलती महोब्बत की सजा
मेरी किस्मत में लिखी मेरे रब ने बस दगा
अब तू मुझसे करे दगा या फिर करे वफ़ा
मैं तेरा बना हूँ, तेरा हूँ, तेरा ही रहूँगा सदा
©तम्मा
20 January 2016
22 December 2015
आखिरी सन्देश
होता है क्या ये प्यार वार मैं वो जानता नहीं
मगर तेरे बिन अपनी ज़िन्दगी मैं मानता नहीं
जब एक ज़िंदा लांश बन गया था ये प्रीतम
तब तुम आये संजीवनी बनकर ज़िन्दगी में
तुमने ही भरे मेरे सारे ज़ख्म ऐंसे मरहम बनकर
जैंसे खुदा खुद आया ज़िन्दगी में हमदम बनकर
चलो मेरे साथ सदा के लिए ऐ मेरे हमदम साथिया
बस तुमसे सिर्फ... सिर्फ इतना ही तो चाहता हूँ मैं
मेरे उस रब ने तुम्हे भेजकर अपना वज़ूद दिखाया
मगर उसके संग अब तुझे अपना रब बनाता हूँ मैं
जानता हूँ कि तेरी भी है यहाँ बहुत सी मजबूरियाँ
मगर क्या करूँ अब जरा भी सही न जाये दूरियाँ
तुम चाहते हो सबकी ख़ुशी हो हमारे रिश्ते में यहाँ
मगर उन सबकी ख़ुशी में तेरे संग इक मैं ही कहाँ
जात-पात का घटिया रोड़ा डाल दिया उन्होंने वहाँ
हम दोनों दो ज़िस्म और एक जान बन गये हैं जहाँ
तू बता एक घटिया सोच से तुम हार जाओगे क्या
जिसको ज़िंदा किया तुमने उसे मार जाओगे क्या
नहीं न? तो फिर क्यूँ सोच रही इतना साथ आने में
तेरे-मेरे जैंसा प्यार अब कहाँ मिलेगा इस ज़माने में
लोगो को तो कहने दे वो जो कुछ भी कहते हैं यहाँ
अपने दिल की सुन कि मेरे बिना उसकी हस्ती कहाँ
चल मेरे साथ..... चल मेरे साथ........... चल मेरे साथ
अब यही रह गई अब से मेरी पहली और आखिरी बात
©शायर- प्रीतम "तम्मा"
http://tammathewriter.blogspot.com/
आखिरी सन्देश
होता है क्या ये प्यार वार मैं वो जानता नहीं
मगर तेरे बिन अपनी ज़िन्दगी मैं मानता नहीं
जब एक ज़िंदा लांश बन गया था ये प्रीतम
तब तुम आये संजीवनी बनकर ज़िन्दगी में
तुमने ही भरे मेरे सारे ज़ख्म ऐंसे मरहम बनकर
जैंसे खुदा खुद आया ज़िन्दगी में हमदम बनकर
चलो मेरे साथ सदा के लिए ऐ मेरे हमदम साथिया
बस तुमसे सिर्फ... सिर्फ इतना ही तो चाहता हूँ मैं
मेरे उस रब ने तुम्हे भेजकर अपना वज़ूद दिखाया
मगर उसके संग अब तुझे अपना रब बनाता हूँ मैं
जानता हूँ कि तेरी भी है यहाँ बहुत सी मजबूरियाँ
मगर क्या करूँ अब जरा भी सही न जाये दूरियाँ
तुम चाहते हो सबकी ख़ुशी हो हमारे रिश्ते में यहाँ
मगर उन सबकी ख़ुशी में तेरे संग इक मैं ही कहाँ
जात-पात का घटिया रोड़ा डाल दिया उन्होंने वहाँ
हम दोनों दो ज़िस्म और एक जान बन गये हैं जहाँ
तू बता एक घटिया सोच से तुम हार जाओगे क्या
जिसको ज़िंदा किया तुमने उसे मार जाओगे क्या
नहीं न? तो फिर क्यूँ सोच रही इतना साथ आने में
तेरे-मेरे जैंसा प्यार अब कहाँ मिलेगा इस ज़माने में
लोगो को तो कहने दे वो जो कुछ भी कहते हैं यहाँ
अपने दिल की सुन कि मेरे बिना उसकी हस्ती कहाँ
चल मेरे साथ..... चल मेरे साथ........... चल मेरे साथ
अब यही रह गई अब से मेरी पहली और आखिरी बात
©शायर- प्रीतम "तम्मा"